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  • Writer: Viral Noax
    Viral Noax
  • Oct 6, 2017
  • 1 min read

जाने क्यूँ आजकल, तुम्हारी कमी अखरती है बहुत यादों के बन्द कमरे में, ज़िन्दगी सिसकती है बहुत

पनपने नहीं देता कभी, बेदर्द सी उस ख़्वाहिश को महसूस तुम्हें जो करने की, कोशिश करती है बहुत

दावे करती हैं ज़िन्दगी, जो हर दिन तुझे भुलाने के किसी न किसी बहाने से, याद तुझे करती है बहुत

आहट से भी चौंक जाए, मुस्कराने से ही कतराए मालूम नहीं क्यों ज़िन्दगी, जीने से डरती है बहुत ।

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